जिला अस्पताल में बिजली हुई गुल, ऑक्सीजन सप्लाई बंद होने से एसएनसीयू में भर्ती नवजात बच्चे की हुई मौत, परिजनों का फूटा आक्रोश

छत्तीसगढ़
कोरबा/स्वराज टुडे: बीती रात जिला अस्पताल में बिजली गुल होने से ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो गई। इससे एसएनसीयू में भर्ती एक नवजात बच्चे की मौत हो गई । परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए आक्रोश व्यक्त किया है।

ISO प्रमाणित इंदिरा गांधी जिला अस्पताल की व्यवस्था कितनी चरमरा गयी है इसका नमूना बीती रात देखने को मिला। कहने को तो कायाकल्प योजना में भी सर्वश्रेष्ठ होने का खिताब जिला अस्पताल को प्राप्त हो चुका है लेकिन असलियत इसके परे है।

बता दें कि जिला अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में कुछ नवजात बच्चे भर्ती थे । बीती रात अस्पताल में बिजली चली । इससे सीक न्यू बोर्न केयर यूनिट ( SNCU)  में ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गई । इस दौरान यहां भर्ती नवजात बच्चों की हालत खराब हो गई। मौके की नजाकत को देखते हुए आनन फानन में एक बच्चे को उसके परिजन कोरबा के एक निजी अस्पताल लेकर चले गए तो वहीं दूसरे बच्चे को उसके परिजन बिलासपुर के प्राइवेट हॉस्पिटल लेकर गए।


अमित कुमार (मृत नवजात के पिता)

दीपका निवासी अमित कुमार की पत्नी की यहां पहली डिलीवरी हुई थी उनको रात 1:00 बजे एसएनसीयू की नर्स ने फोन कर बुलाया और कहा कि उनके बच्चे की हालत खराब हो रही है। वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि अस्पताल में बिजली की आँख मिचौली चल रही है। नर्स ने कहा कि वोल्टेज फ्लकचुएशन के कारण ऑक्सीजन की सप्लाई में बाधा आ रही है । मशीन ज्यादा लोड नहीं ले पा रही है। वे चाहें तो दूसरे लोगों की तरह अपने बच्चे को भी किसी दूसरे हॉस्पिटल ले जाएं।

अभी ये वार्ता चल ही रही थी कि उनके मासूम बच्चे की साँसें उखड़ने लगी और इससे पहले कि परिजन कुुुछ निर्णय ले पाते मासूम ने दम तोड़ दिया। नवजात के पिता अमित कुमार ने आरोप लगाया है कि अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण उनके बच्चे की मौत हो गई है।  बच्चे की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन ने उन पर शव ले जाने का दबाव भी बनाया ।

दूसरी तरफ अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि बच्चा जन्म से ही काफी कमजोर था इसलिए उसकी मौत हुई है। प्रबंधन का कहना है कि बिजली जाने के बाद जल्द ही बिजली आपूर्ति बहाल कर ली गई थी । हालांकि प्रबंधन ने मामले की जांच की बात भी कही है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अस्पताल में लगा जनरेटर लंबे समय से खराब पड़ा है जिसको बनवाने में भी अस्पताल प्रबंधन का ध्यान नहीं है।

बता दें कि जिला अस्पताल में ज्यादातर ऐसे लोग आते हैं जो निजी अस्पतालों की भारी भरकम फीस देने में असमर्थ होते हैं । लेकिन उन्हें यहां वो चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती जो निजी अस्पतालों में मिलती है । इस बात को अस्पताल प्रबंधन भी भली भांति समझता है और शायद यही वजह है कि ऐसे मरीजों के परिजनों के साथ व्यवहार भी मात्र औपचारिक होता है ।

जरा कल्पना कीजिए कि मृत नवजात बच्चा अगर किसी रसूखदार परिवार से तालुक रखता तो यहां इतना हंगामा शुरू हो गया होता जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । बहरहाल देखना होगा कि इस घटना के बाद अस्पताल प्रबंधन व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाता है अथवा नहीं ।